जादुई पिंजरे में कैद संजय, विजय, रघु और रवि बुरी तरह तड़प रहे थे। उनके पूरे शरीर पर बहुत बड़े-बड़े जख्म बन गए थे, जिनका दर्द उनके लिए असहनीय हो रहा था। दर्द के मारे हुए वो चारों जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, जिसकी वजह से जंगल की धरती कांपने लगी।
आकांक्षा उस कंपन से घबरा गई और डर के मारे रीवांश का हाथ पकड़ लिया।
"आज कल शिमला में कुछ ज्यादा ही अर्थक्वेक नहीं आ रहे क्या? और.... और ये जंगल में इतना भयंकर शोर किस चीज का हो रहा है? तुम यहां कितने दिनों से कैद हो? कहीं यहां पर खतरनाक जानवर तो नहीं.... प्लीज यहां से निकलने के लिए कुछ करो। इससे पहले कि वो हमें अपना शिकार बना ले।" आकांक्षा ने घबराते हुए बोला।
" सही कहा आपने, जंगली जानवरों का ही शोर है।" रीवांश ने अपने दूसरे हाथ से उसका हाथ सहलाया, "लेकिन आप फिकर मत कीजिए, वह इस तरफ नहीं आएंगे। हम यहां सुरक्षित हैं।"
"तुम पागल हो गए हो क्या? जानवरों का क्या भरोसा? वो तो कहीं भी आ सकते हैं। मुझे यहां पर की हर एक चीज काफी रहस्यमई लग रही है। पता नहीं तुम इतना नॉर्मल बिहेव कैसे कर सकते हो।" आकांक्षा ने चारों तरफ देखते हुए बोला।
उन चारों के चिल्लाने की आवाज बढ़ती जा रही थी। जिसे सुनकर आकांक्षा बहुत ज्यादा डर रही थी।
"अगर यह चारों ऐसे ही चिल्लाते रहे, तो हम ज्यादा देर तक इनसे सच नहीं छुपा पाएंगे। हमें कुछ ना कुछ करना होगा। रीवांश ने आकांक्षा की तरफ देखकर सोचा, जो कि डर के मारे कांप रही थी।
रीवांश ने आकांक्षा को अपने वश में करने के लिए उसे पकड़ कल अपने करीब खींचा, और उसकी आंखों में देखने लगा। उसकी हरकत से वो गुस्सा हो गई और उसने रीवांश को खुद से दूर धकेला।
" यह क्या कर रहे थे तुम? देखो.. भले ही हम दोनों जंगल में एक साथ फंस गए है, लेकिन तुम इस तरह सिचुएशन का एडवांटेज कैसे उठा सकते हो? इस वक्त हमें यहां से बाहर निकलने के बारे में सोचना चाहिए। अगर यहां पर अंधेरा नहीं होता, तो मैं कभी तुम्हारे साथ नहीं रूकती। तुमने जो यह किया है वह...."
आकांक्षा बोल रही थी तभी रीवांश ने अपने आंखों से ऊपर के पेड़ की लकड़ी को तोड़कर नीचे गिरा दिया। जिससे उसे लगा कि रीवांश ने उसे बचाने के लिए अपने करीब खींचा था।
" हम तो बस आप को बचाना चाहते थे। आप हमें गलत मत समझिए। अगर हम आपको नहीं खींचते, तो यह लकड़ी आपके ऊपर गिर जाती और आप इससे बेहोश भी हो सकती थी" रीवांश ने झूठी सफाई दी।
"और तुम्हें इतने अंधेरे में सब कुछ साफ कैसे दिखाई दे गया आकांक्षा गुस्से में पूछा तो रीवांश ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, "अगर आपको हम पर विश्वास नहीं है, तो हम यहां से चले जाते हैं।"
आकांक्षा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि अब उसके पास रीवांश पर विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।
"ठीक है लेकिन मुझ से थोड़ा दूर रहना।" कहकर आकांक्षा आगे की तरफ चलने लगी।
"इस पर हमारे जादू का कोई असर क्यों नहीं हो रहा? ना तो हम इसका मन पढ़ पा रहे हैं और ना ही यह हमारे बस में आ रही हैं। लगता है, अब तो उन चारों आवाज रोकने के लिए हमें उनके पास जाना पड़ेगा" सोचते हुए अगले ही पल रीवांश वहां से हवा की तरह दौड़ते हुए उस पिंजरे के पास पहुंचा, जहां पर वह चारों पिशाच कैद थे।
"बाहर निकालो हमें यहां से.... तुम इस तरह हमें बंदी बनाकर नहीं रख सकते।" रीवांश को देखकर रघु दर्द से चिल्लाया।
रीवांश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उस पिंजरे को उठाकर वहां से दूर चल दिया। उसने अपना विशाल रूप धारण कर रखा था और सब कुछ इतनी तेजी से हो रहा था कि आकांक्षा को एहसास भी नहीं था कि रीवांश उसके साथ नहीं हैं।
जंगल के दूसरे कोने पर जाकर रीवांश ने जमीन के अंदर अपने पैरों से जोर से एक बड़ा वार किया। एक ही वार में बड़ा सा गहरा गड्ढा बन गया। उसने उस पिंजरे को उस गड्ढे में डाल दिया। उस गड्ढे को फिर से बंद करके रीवांश आकांक्षा के पास वापस आ गया।
"अच्छा, ठीक है। मैंने तुम्हें गलत समझा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं यहां अकेले पटर पटर बोलती रहूं और तुम कुछ जवाब ही ना दो। कुछ तो बोलो। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं इतनी देर से अकेले चल रही हूं। पिछले 10 मिनट से तुमने एक शब्द भी नहीं बोला।" आकांक्षा थकने की वजह से एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गई।
"वो बस हम आपकी बातें सुन रहे थे।" रीवांश ने उसके पास बैठते हुए जवाब दिया," आप की जगह उस वक्त कोई और होता, तो वह भी हमें गलत ही समझता। डोंट वरी हम आप से नाराज नहीं है।"
"मुझे बहुत भूख लग रही है... अब मुझसे नही चला जाएगा। क्या यहाँ ऐसा कोई पेड़ नही है, जो जंगली ना हो।"
"ठीक है। हम कुछ लेकर आते है। लेकिन आप यहां से बिल्कुल भी मत हिलीएगा।"
"लेकिन तुम कहाँ जा रहे हो? जानते हो ना, यहां बहुत खतरा है। ऐसे में तुम मेरे लिए खाने के लिए कुछ कैसे लेकर आओगे?" आकांक्षा ने उसे जाने से साफ इनकार कर दिया।
"हम यहाँ काफी समय से है। तो हमें यहाँ के बारे में थोड़ी जानकारी है। यहाँ से थोड़ा आगे जाकर कुछ पेड़ है, जिनके फल जंगली नही है।"
"अगर थोड़ी ही दूरी पर है, तो मै भी चलती हूँ तुम्हारे साथ.!" आकांक्षा खड़ी होकर उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई।
"आप थक गयी होंगी, यहाँ आराम कीजिए। हम बस अभी लेकर आते है। वैसे भी हम यहां पर काफी दिनों से फंसे हुए हैं, तो यहां के माहौल से थोड़ा बहुत परिचित हो गए हैं। यह जगह सुरक्षित है। यहां पर कोई जंगली जानवर नहीं आएगा। हम बस अभी आपके लिए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।"
रीवांश पलक झपकते ही जंगल के किनारे वाले कुछ पेड़ों पर से बहुत सारे फल तोड़कर ले आया। वह लगभग 2 से 3 मिनट में वापस आ गया, तो उसे इतनी जल्दी वहां देखकर आकांक्षा ने हैरानी से पूछा, "अरे तुम इतनी जल्दी आ भी गए?"
"हाँ बस पास में ही था।" रीवांश ने मुस्कुराते हुए सभी फलों को उसे दे दिया। आकांक्षा जल्दी जल्दी उन्हे खाने लगी, तो रीवांश मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था।
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शाम के वक्त जानवी और राजवीर जी राजपुरोहित जी से मिलने कांगडा का मंदिर पहुँचे। वो मंदिर पहुँचे, तब वहाँ संध्या आरती हो रही थी। राजवीर जी और जानवी पहले आरती मे शामिल हुए और उसके बाद पंडित जी मिलने पहुँचे।
"प्रणाम पंडित जी.!" राजवीर जी ने हाथ जोड़कर कहा, "वो हमें राजपुरोहित जी से मिलना था। आज तो वह संध्या आरती में भी दिखाई नहीं दिए वरना ऐसा तो हो नहीं सकता कि वह आरती में शामिल ना हो।"
पंडित जी ने उन्हें प्रसाद देते हुए कहा, "हाँ श्रीमान... वैसे तो राजपुरोहित जी संध्या आरती के वक़्त मंदिर के प्रांगण में ही रहते है, लेकिन आज ही किसी विशेष पूजा को संपन्न करवाने के लिए पास ही के गाँव मे गए है।"
"क्या? लेकिन हमारा उनसे मिलना बहुत जरुरी था। वो वापिस कब तक आएगे?" पंडित जी की बात सुनकर जानवी का मुँह उतर गया, "दद्दू अब कैसे होगा?"
"वो कल सुबह तक आ जाएंगे। आप तब तक मंदिर की धर्मशाला मे रुक जाइये। कल जब वो वापिस आएंगे, तो मिल लीजियेगा। मै श्यामु को कह देता हूँ, वो आपको वहाँ छोड़ आएगा।" पंडित जी ने पास में खड़े इस आदमी को इशारे से बुला कर कहा, "श्यामू, इन श्रीमान जी और इनके साथ आई बच्ची को गेस्ट हाउस में कमरा दिला दो, ताकि इन्हे रुकने में कोई परेशानी ना हो। कल सुबह जब राजपुरोहित जी यहां वापस लौट आएंगे। तब आप उनसे बातचीत कर लीजिएगा। वहां आपके रहने के साथ खाने का भी प्रबंध हो जाएगा। अब मुझे इजाजत दीजिए।"
"धन्यवाद पंडित जी! चलो जानवी, गेस्ट हाउस मे चलते है। एक राजपुरोहित जी से ही उम्मीद थी कि वो शायद कुछ कर सके, लेकिन वो भी यहाँ पर नही है। ये मुसीबते है कि पीछा छोड़ने का नाम ही नही लेती।" राजवीर जी ने निराश होकर कहा।
"हाँ दद्दू, मुसीबते भी बिल्कुल पिंपल्स की तरह है, एक जाता नही कि उस से पहले दो - चार और निकल आते हैं।"
उसकी बात सुनकर राजवीर जी के उदास चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।
"तुम भी ना जानवी.... उदाहरण तो अच्छा देती। मुसीबतों को पिंपल से कौन कंपेयर करता है?"
"दद्दू आपको नही पता, पिंपल्स किसी मुसीबत से कम नही होते।"
राजवीर जी जानवी के साथ धर्मशाला के कमरे में पहुंचे। अब उनकी एकमात्र उम्मीद राजपुरोहित जी थे और वह यहां पर मौजूद नहीं होने के कारण उनके पास उनका इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।
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वहीं दूसरी तरफ जंगल में फल खाने के बाद आकांक्षा कुछ देर के लिए सो गई। सूरज ढल चुका था और वह दोनों अभी तक उसी पेड़ के नीचे बैठे थे।
आकांक्षा को फिर से भूख लगने की वजह से वो बचे हुए फल खा रही थी।
"तुमने कुछ खाया क्यों नही... तुम्हे भूख नही लगी। यह लो तुम भी कुछ फ्रूटस खा लो ।आगे हमें काफी दूर तक चलना होगा। क्या पता कुछ खाने को मिले या ना मिले।"
"हाँ... और शिकार हमारे सामने बैठा है लेकिन पहली बार किसी की जान लेने का मन नही हो रहा है।" रीवांश ने सोचा।
"तुमने बोला था ना कि तुम यहाँ का रास्ता जानते हो। मुझे बाहर जाना है। मेरे घरवाले मेरी फिक्र कर रहे होंगे। क्या हम यहां से जल्द से जल्द नहीं निकल सकते।"
आकांक्षा की बात का जवाब देने के बजाय रीवांश अपने मन में सोच रहा था, "हम चाहे तो एक मिनिट में आपको जंगल के बाहर फेंक दे, लेकिन फिर आपको हमारी सच्चाई का पता चल जाएगा।"
उसके जवाब ना देने की वजह से आकांक्षा झुंझला उठी। उसने नाराज होकर बोला, "तुम बार बार कहाँ खो जाते हो? मै कब से बकबक किए जा रही हूँ और तुम हो कि कुछ बोल ही नही रहे।"
"आप सामने वाले को बोलने का मौका ही कहाँ देती है?" इतना बोल कर रीवांश फिर चुप हो गया।
वह दोनों बात कर रहे थे कि तभी रीवांश को किसी की आहट सुनाई दी। उसे किसी इंसान के आसपास होने की खुशबू आ रही थी।
"लगता है कि हमारी भूख मिटाने का इंतज़ाम हो गया।" रीवांश ने सोचा, कि तभी उसकी नजर आकांक्षा कि तरफ गयी, जो कि उसकी सच्चाई से बेखबर थी।
"आप यही रहियेगा, हम अभी आते है बस।" कहकर रीवांश वहां से हवा की तरह फुर्र हो गया।
रीवांश खुशबू का पीछा करते हुए आगे बढ़ा तो उसे सामने एक आदमी दिखाई दिया, जो कि बाकी लोगों की तरह गलती से जंगल मे आ गया था।
"पता नहीं कैसे इस मनहूस जंगल में कदम पड़ गए। हे भगवान! रक्षा करना।" वह आदमी बड़बड़ाते हुए चल रहा था।
तभी रीवांश ने उसके करीब आकर कहा, "लगता है आप रास्ता भटक गए हैं। आइए हम आपकी मदद करते हैं।"
उस आदमी ने रीवांश को धक्का देकर बोला,"अरे जाओ! तुम जैसे दो कौड़ी के लोगों से मदद लूंगा क्या मै? तुम नहीं जानते मैं कौन हूं.... अरे बहुत पैसे वाला आदमी हूं। मैं तुम जैसे लुटेरों को अच्छे से जानता हूं। अमीर आदमी देखा नहीं कि बस आ जाते हैं लूटने...!"
रीवांश तेजी से फिर उसके पास आ गया, "शायद आप नहीं जानते कि हम कौन हैं।" रीवांश ने उसे आगे कुछ बोलने का मौका नहीं दिया और उससे पहले ही उसकी गर्दन के पास आकर उसका सारा खून एक बार पी लिया, "इस बार हम अपने शिकार से माफी नहीं मांगेंगे। आप जैसे लोग जो गरीब लोगों को कुछ नहीं समझते हैं, उन्हें जीने का भी कोई हक नहीं है। आपके खून की बदबू ही बता रही है कि आपने कितने मासूम लोगों के हक का खाया होगा।"
रीवांश वहाँ खड़ा था कि तभी अचानक उस के चेहरे पर टॉर्च की लाइट पड़ी। उस रोशनी में रीवांश के चेहरे पर खून लगा हुआ साफ दिखाई दे रहा था। उसके चेहरे पर शैतानियत और आंखों में खून उतर आया था।
मुंह पर रोशनी आने की वजह से रीवांश की आंखें चौधिया गई। वो उस रोशनी में साफ देख पाता कि तभी सामने से आवाज आई।
"त....तुम... तुम एक पिशाच हो।" सामने आकांक्षा थी, जो रीवांश को उसके असली रूप मे देखकर डर के मारे काँप रही थी।
Art&culture
04-Jan-2022 12:02 AM
Good story
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Aliya khan
24-Dec-2021 06:06 PM
Nice
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Sana
24-Dec-2021 12:05 PM
👏
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